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Rana Sanga's SHOCKING Invitation to Babur! | Rana Sanga Controversy | Hyper Quest
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अगर आपका एक हाथ काट दिया जाए, एक आंख निकाल ली जाए और एक पैर तोड़ दिया जाए, तो आप पूरी जिंदगी भगवान को कोसते हुए एक बेचारे और लाचार की तरह बिता देंगे और कहीं गलती से पैसे वाले होंगे तो दो-चार नौकर रख लेंगे और सेवा लेंगे। राणा सांगा तो राजा थे। उनके पास अथाह पैसा था। लेकिन जब बात मेवाड़ पर आई, जब बात राजपूतों पर आई, जब राजपूतों को जड़ से उखाड़ने के लिए बाबर की सेना आगरा से निकली। तो जहां बाबर सेना के पीछे-पीछे आ रहा था, तो वहीं राणा सांगा अपनी सेना के आगे छाती चौड़ी किए उस आताताई से लड़ने के लिए खड़े थे। याद रखिएगा एक आंख नहीं, एक हाथ नहीं और एक पैर टूटा हुआ। और आज ऐसे बहादुर योद्धा को गद्दार कहा जा रहा है कुछ चंद वोटों के लिए। अरे आपको तो गर्व होना चाहिए उस राणा सांगा पर जिसके ना केवल जीते जी बल्कि जिसके मरने के बाद भी उनकी आगे आने वाली पीढ़ियों ने मुगलों से कभी समझौता नहीं किया जबकि दूसरी तरफ कई राजपूत जागीरों ने मुगलों से संधियां की समझौता किया जिससे युद्ध को टाला जा सके लेकिन राणा सांगा के मेवाड़ ने ऐसा कभी नहीं किया| राणा सांगा ने 18 बड़े युद्ध लड़े बाबर को भी हराया और जिस खानवा के युद्ध में बाबर जीता वहां राणा सांगा मरे नहीं थे बस घायल हुए थे उनको तो अपनों ने मारा जो इस बात की गवाही देता है कि हमारा देश गद्दारों से भरा पड़ा है और उनमें से कुछ गद्दार आज भी जिंदा हैं। साथियों आप सभी का हाइपर क्वेस्ट के एपिसोड नंबर 144 में स्वागत है। आज मैं आपको इतिहास के पन्नों में पीछे ले चलूंगा और दिखाऊंगा कि कौन कितना बड़ा गद्दार है। साथियों आप सभी हाइपर क्वेस्ट चैनल को सब्सक्राइब कर लें। बेल आइकन को प्रेस करके नोटिफिकेशंस भी ऑन कर लें जिससे हमारी वीडियोस आपको सबसे पहले मिले। अब बिना किसी विलंब के आज की वीडियो को प्रारंभ करते हैं। तो साथियों हम भारतीयों को राणा सांगा तब याद आते हैं जब समाजवादी पार्टी के नेता रामजीलाल सुमन संसद में एक विवादित बयान देते हैं। वो कहते हैं कि मुसलमान तो बाबर की संताने हैं लेकिन हिंदू हिंदू तो गद्दार राणा सांगा की संताने हैं क्योंकि राणा सांगा ने बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया था। कि बाबर को लाया कौन? बाबर को इब्राहिम लोदी को हराने के लिए राणा सांगा लाया था। तो मुसलमान तो बाबर की औलाद है और तुम गद्दार राणा सांगा की औलाद हो। अब ये बात रामजीलाल सुमन बड़ी फुर्ती और कॉन्फिडेंस से शायद इसलिए कह पाते हैं क्योंकि उनको किसी ने बाबर की ऑटोबायोग्राफी बाबरनामा पढ़ाई होगी। या फिर यह बताया होगा कि ऐसी बात बाबरनामा में लिखी हुई है कि राणा सांगा का एक दूत एक संदेश लेकर उसके पास आया था जिसमें राणा सांगा बाबर को आमंत्रित करते हैं उत्तर से दिल्ली पर हमला करने के लिए और यह भी वादा करते हैं कि उस समय वो आगरा से दिल्ली पर हमला करेंगे और मिलकर इब्राहिम लोदी को हराएंगे। अब साथियों ये जितना सीधा लग रहा है उतना सीधा है नहीं क्योंकि जब बाबर ने दिल्ली पर उत्तर से आक्रमण किया तो राणा सांगा जी ने आगरा की तरफ से दिल्ली पर आक्रमण किया ही नहीं और इसीलिए बाबर अपनी बाबरनामा में आगे लिखता है कि काफिर राणा सांगा ने आगरा की तरफ से दिल्ली पर हमला नहीं किया और गद्दारी की। अब जो शब्द बाबर के हैं कि राणा सांगा गद्दार निकला वही शब्द रामजीलाल सुमन के संसद में हैं कि राणा सांगा गद्दार हैं। तो चलिए समझते हैं कि असली माजरा क्या है कि बाबर और रामजीलाल सुमन दोनों एक ही सुर में राणा सांगा को गद्दार कह रहे हैं। अब साथियों ये पूरा मामला अर्ली 16 सेंचुरी का है। और अगर इस मिस्ट्री को सॉल्व करना है कि बाबर ने आखिर भारत पर आक्रमण क्यों किया? तो हमें आक्रमणकारी बाबर, दिल्ली में बैठा सुल्तान इब्राहिम लोदी और मेवाड़ के राजा राणा सांगा इन तीनों की तत्कालीन स्थितियों को समझना पड़ेगा। और आप सभी को पता है कि दिल्ली नए-नए राजाओं का गढ़ रही है। अगर किसी ने भी पंजाब के रास्ते भारत पर आक्रमण किया है तो उसका पहला गोल होता था दिल्ली पर कब्जा करना। तो आइए सबसे पहले दिल्ली में बैठे सुल्तान इब्राहिम लोदी के बारे में जानते हैं। साथियों, लगभग 500 साल के संघर्ष के बाद किसी विदेशी आक्रमणकारी ने 1192 में एक भारतीय नेटिव किंग को हराया था। यह आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी था और हारने वाले राजा पृथ्वीराज चौहान थे और पृथ्वीराज चौहान जी के हारने के बाद पहली बार दिल्ली पर किसी विदेशी का कब्जा हो गया था। अब इसके बाद मोहम्मद गौरी तो वापस चला जाता है लेकिन अपने गुलामों को दिल्ली की सत्ता पर बैठा कर जाता है और यहीं से शुरू होती है दिल्ली सल्तनत। यह दिल्ली सल्तनत 1206 से 1526 तक यानी बाबर के आने तक भारत में रही और इस दिल्ली सल्तनत के लगभग 300 सालों में पांच बड़ी डायनेस्टीज हुई। जिनमें से लोदी डायनेस्टी अंतिम डायनेस्टी थी और दिल्ली सल्तनत का अंतिम सुल्तान इब्राहिम लोदी था। 1517 में जब उसके पिता सिकंदर लोदी की मृत्यु हुई तब वह सत्ता पर आरूढ़ हुआ और 1526 तक लगभग 9 साल तक दिल्ली पर राज किया लेकिन इब्राहिम लोदी के बाद दिल्ली सल्तनत मटियामेट हो गई और दिल्ली पर मुगलों का कब्जा हो गया। तो आप समझ सकते हैं कि इब्राहिम लोदी एक मरती हुई दिल्ली सल्तनत का सुल्तान था और जिस तरह से वो राज्य करता था उसके जितने भी गवर्नर्स थे वो उससे खुश नहीं थे। ज्यादातर गवर्नर्स उसके पिता सिकंदर लोदी के लिए तो लॉयल थे लेकिन उसके शासनकाल में उसके खिलाफ बगावत करने लगे थे। इसके कई रीज़न हैं। मुख्य रीज़न अगर मैं बताऊं तो सबसे पहला सिकंदर लोदी में जो शासन करने के गुण थे वो इब्राहिम लोदी में नहीं थे। इसीलिए इब्राहिम लोदी बहुत इनसिक्योर रहता था। बहुत डरा रहता था कि उसका राज्य कोई छीन ना ले। अगर उसका एक भाई उस पर हमला करता था तो सभी दूसरे भाइयों को बिना वजह बंदी बना लेता था। उसको लगता था आज एक भाई ने हमला किया है तो बाकी भी कर सकते हैं। तो बिना किसी कारण के अपने हर एक व्यक्ति पर शक करता था और इसी वजह से जो पुराने कमांडर्स थे उनको वो रिप्लेस कर देता था नए कमांडर से जिससे जो नए कमांडर्स हो वो उसके लिए लॉयल रहें। तो आप यहां पर इब्राहिम लोदी के बारे में मोटा-मोटा समझ गए हैं। अब हम बढ़ते हैं मेवाड़ के राजा राणा सांगा की तरफ। अब साथियों जिस दिल्ली सल्तनत की हमने बात की उसके दक्षिण पश्चिम में मेवाड़ का राज्य था और जिस समय इब्राहिम लोदी दिल्ली सल्तनत पर शासन कर रहा था उस समय मेवाड़ में राणा सांगा शासन कर रहे थे। वैसे देखा जाए तो 1508 ईस्वी में ही राणा सांगा मेवाड़ की गद्दी पर बैठ गए थे। लेकिन 1520 आते-आते राणा सांगा एक बहुत ही ताकतवर राजा के रूप में उभरे थे। ऐसा कैसे हुआ? अगर आप मेवाड़ को देखें तो मेवाड़ चारों तरफ से इस्लामी शासकों से घिरा हुआ था। अगर आप नॉर्थ में देखें तो इब्राहिम लोदी था। साउथ में अगर आप मालवा में जाते तो वहां पर महमूद खिलजी द्वितीय का शासन था। और वहीं साउथ में अगर आप गुजरात की सल्तनत देखें तो वहां पर मुजफ्फर शाह द्वितीय का शासन था। चारों तरफ इस्लामिक शासक थे। एक अकेला हिंदू राज्य बीच में था तो इसलिए हमेशा वो खतरों से घिरा रहता था और ऐसे में राणा सांगा पृथ्वीराज चौहान के बाद पहले राजपूत राजा हुए थे जिन्होंने राजपूतों को एकत्रित किया था, संगठित किया था और अखंड भारत का सपना दिखाया था। आप यह भी कह सकते हैं कि उत्तर भारत में राणा सांगा वो आखिरी हिंदू राजा थे जिन्होंने ना केवल अपनी सीमा का विस्तार किया बल्कि उसको नियंत्रित भी किया। राणा सांगा गद्दी संभालने के बाद 18 बड़े युद्ध लड़ते हैं जिसमें वह मालवा को भी जीतते हैं। गुजरात के उत्तरी भागों को भी जीतते हैं और इब्राहिम लोदी से भी लड़कर उसकी भी ताकत को कमजोर करते हैं। 1517 से लेकर 1520 के बीच में राणा सांगा इब्राहिम लोदी को कम से कम तीन बार हराते हैं। एक बार खतौली में, एक बार धौलपुर में और एक बार रणथंबोर में और इतनी बुरी तरह हारने के बाद इब्राहिम लोदी का जो थोड़ा बहुत वर्चस्व राजस्थान के अंदर था वो पूरी तरह से खत्म हो जाता है। और जो राणा सांगा के राज्य की सीमाएं होती हैं, वह आगरा तक पहुंच जाती हैं। और साथियों, इब्राहिम लोदी से इन्हीं युद्धों के दौरान उनका एक हाथ कट जाता है और उनका एक पैर कमजोर पड़ जाता है। लेकिन वो फिर भी रिटायर नहीं होते हैं और अपनी सेना को आगे आने वाले युद्धों में भी फ्रंट से बहादुरी के साथ लीड करते हैं। तो राणा सांगा के इसी पराक्रम को देखकर उस समय राजपूताना के जितने भी राजा होते हैं वो राणा सांगा को एक साथ अपना समर्थन देते हैं और यह पहली बार होता है कि इतने ढेर सारे हिंदू राजा जो आपस में बैर रखते थे वो सभी एक साथ आकर विदेशी ताकतों से लड़ने के लिए तैयार हो गए थे। तो अब जब मेवाड़ की सीमाएं आगरा तक पहुंच गई थी तो राणा सांगा का अगला टारगेट दिल्ली था। साथियों अब आप इब्राहिम लोदी और राणा सांगा के बारे में बहुत सी बातें जान गए हैं। अब आइए जानते हैं बाबर की कहानी। फिर हम इस पजल को सॉल्व करेंगे। साथियों आज के समय में अक्सर यह प्रश्न उठाया जाता है कि आज आधुनिक समय में रामायण और महाभारत की या फिर वेद पुराणों की क्या आवश्यकता है? साथियों जब परिस्थितियां प्रतिकूल होती हैं, जब आपको आशा की कोई किरण नहीं दिखाई देती, तब आपके जो आदर्श होते हैं इतिहास में वही आपका बेड़ा पार लगाते हैं। आपको याद होगा कि जब छत्रपति संभाजी महाराज औरंगजेब के सामने खड़े थे तो औरंगजेब के सामने इसीलिए टिक पाए क्योंकि औरंगजेब में उन्हें रावण दिखा और अपने अंदर हनुमान जी और ऐसे ही वीर राणा सांगा एक हाथ और एक पैर के दम पर बाबर से लड़ पाते हैं क्योंकि उन्हें अभिमन्यु के बारे में पता था जो अकेले कितने महारथियों से लड़ गया था। तो आपका इतिहास और आपके पूर्वजों का ज्ञान विपरीत परिस्थितियों में एक शक्ति के रूप में उभरता है और इसी दिशा में हमारे भारतीय ज्ञान से हमको ज्यादा से ज्यादा लाभ हो। हम विपरीत परिस्थितियों में अच्छा कर सकें और अपने जीवन में आगे बढ़ सकें। हमने शिक्षणम प्लेटफार्म बनाया है। जहां पर आप वेदों के ज्ञान को, उपनिषदों के ज्ञान को, दर्शनों को, हमारे प्राचीन आचार्यों के ज्ञान को अपने फोन पर ही सीख सकते हैं। 1 लाख से ज्यादा विद्यार्थी शिक्षणम पर दैनिक रूप से भारतीय ज्ञान परंपरा से जुड़कर अपने जीवन को बेहतर बना रहे हैं और इस समय हम ज्ञानोत्सव मना रहे हैं। हमारे प्रत्येक कोर्स पर आपको 30% का एक्स्ट्रा डिस्काउंट भी दे रहे हैं। जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग इस अमूल्य ज्ञान से जुड़ पाएं। आपको सारी डिटेल्स वेबसाइट और ऐप की लिंक नीचे डिस्क्रिप्शन बॉक्स और कमेंट सेक्शन में मिल जाएगी। मैं आप सभी का शिक्षणम पर स्वागत करता हूं। चलिए अब आज की वीडियो में आगे बढ़ते हैं। अब साथियों भारत में मुगल वंश की स्थापना बाबर ने की थी। बाबर के इतिहास को अगर आप समझना चाहें तो बाबर आधा मंगोल आधा मुस्लिम था। मां की तरफ से अगर आप देखें तो चंगेज़ खान का वंशज था और अगर आप पिता की तरफ से देखेंगे तो तैमूर लंका वंशज था। बाबर उज्बेकिस्तान में फरगाना की घाटियों में पैदा हुआ था और मात्र 12 वर्ष की आयु में वो फरगाना के तख्त पर बैठ गया था और तख्त पर बैठने के बाद मात्र 2 वर्ष के भीतर उसने समरकंद को भी जीत लिया था। लेकिन साथियों उस छोटी उम्र में इतनी अच्छी शासन कला नहीं थी बाबर की क्योंकि जब वो समरकंद जीतता है तो फरगाना को हार जाता है और समरकंद को जीतने के बाद जब वो वापस फरगाना को लेने जाता है तो उसके हाथ से समरकंद फिर से निकल जाता है और जब फरगाना और समरकंद उन दोनों को फिर से वो क्लेम करने जाता है तो 1501 में उज़्बेक का एक प्रिंस होता है मोहम्मद शाहबानी वह बाबर को खदेड़ देता है और बाबर को उज़्बेकिस्तान से भागकर काबुल आना पड़ता है और फिर बाबर काबुल में अपनी सत्ता को स्थापित करता है और एक बार काबुल में अपने पैर पैर को जमाने के बाद 1504 से लेकर 1514 तक बाबर लगातार समरकंद को जीतना चाहता है। कई बार वह जीतता भी है लेकिन कुछ दिनों में हार जाता है और ऐसा कई बार होता है और जब वो समरकंद को तीन बार जीतकर हार जाता है तो उसकी समरकंद में रुचि घट जाती है और अब वो भारत की तरफ देखने लगता है। वो अपनी ऑटोबायोग्राफी बाबरनामा में यह भी लिखता है कि वह हमेशा से हिंदुस्तान को जीतने का ख्वाब देखता था और इसके पीछे सबसे बड़ा कारण था कि वह काबुल में बहुत ढेर सारे दुश्मनों से घिरा हुआ था। जहां उसको उज़्बेक से भी लड़ना पड़ता था। वहीं जो लोकल अफगानी रिबेल्स होते थे उनसे भी लड़ना पड़ता था। इसलिए उसको अपने एक स्टेबल राज्य के लिए एक नई जगह चाहिए थी और वो नई जगह ऐसी भी होनी चाहिए थी जो इन दुश्मनों से सुरक्षित हो। तो ऐसे में उसको पता था कि अगर वह सिंधु नदी को पार कर लेता है तो वह सुरक्षित और सेफ जगह पर भी पहुंच जाएगा और अपने राज्य के लिए एक नए किंगडम को स्थापित कर पाएगा। और ऐसे में जब बाबर को पता चलता है 1517 में कि सिकंदर लोदी की मृत्यु हो गई है और दिल्ली का जो तख्त है अब वो इब्राहिम लोदी के पास है जो कि एक कमजोर शासक है। तो बाबर अपने ख्वाब को पूरा करने के लिए 1519 से लेकर 1524 तक लगातार पंजाब पर चढ़ाई करने लगता है। तो बाबर भी दिल्ली पर कब्जा करके भारत पर राज करना चाहता था। तो हमारे पास तीन लोग हैं जिनकी निगाहें दिल्ली पर है। एक तो इब्राहिम लोदी जो अपनी दिल्ली सल्तनत को आगे बढ़ाना चाहता है। दूसरे राणा सांगा जो अखंड भारत बनाना चाहते हैं और तीसरा बाबर जो एक नई सुरक्षित भूमि ढूंढ रहा है अपने दुश्मनों से बचने के लिए और अपना राज्य स्थापित करने के लिए। तो अब साथियों आइए पता लगाते हैं कि किसने किसको बुलाया था। अब साथियों हमने जितना भी समझा उससे एक बात तो क्लियर है कि बाबर को कोई बुलाता या ना बुलाता भारत पर आक्रमण बाबर तो जरूर करता क्योंकि यह बाबर की नीड थी। बाबर अपने दुश्मनों से भागना चाहता था। एक नई जगह चाहता था। सुरक्षित जगह चाहता था जहां पर वो शासन कर सके और साथ में सिकंदर लोदी की मृत्यु उसके लिए बहुत बड़ा इनविटेशन थी क्योंकि अब दिल्ली सल्तनत कमजोर हो गई थी। इसीलिए 1517 के बाद उसने चार बार पंजाब पर चढ़ाई की जिससे वह भारत में किसी ना किसी तरह से एक्सेस पा जाए। अब साथियों आ जाते हैं इस मुद्दे पर कि बाबर को असल में इब्राहिम लोदी के खिलाफ किसने आमंत्रित किया? अब साथियों जिस बाबरनामा से रामजीलाल सुमन ये प्रमाण दे रहे हैं कि राणा सांगा जी ने बाबर को आमंत्रित किया इब्राहिम लोदी पर आक्रमण करने के लिए। उसी बाबरनामा में साफ-साफ बाबर लिखता है कि पंजाब का गवर्नर दौलत खान लोदी इब्राहिम लोदी पर आक्रमण करने के लिए बाबर से कहता है। क्योंकि जैसा कि मैंने बताया था कि कोई भी गवर्नर जो उस समय इब्राहिम लोदी के अंडर काम कर रहा था उसके अधीन होकर दूसरी रियासतों पर काम करने वाले गवर्नर अब उससे खुश नहीं थे और उसमें सबसे ज्यादा नाख था दौलत खान लोदी। और दौलत खान लोदी के लिए तो दोनों तरफ से समस्या थी। एक तरफ वो पंजाब को संभाल रहा था इब्राहिम लोदी के लिए और वो इब्राहिम लोदी को पसंद नहीं करता था और दूसरी तरफ पंजाब संभालना बहुत आसान काम नहीं था क्योंकि बाबर लगातार हमले कर रहा था। तो ऐसे में दौलत खान लोदी बुरी तरह से टूट जाता है और इससे पहले कि वो दोनों तरफ से पिस जाता वो एक साइड लेना चाहता है और इसीलिए वो बाबर की तरफ जाता है यह सोचकर कि बाबर की तरफ होकर इब्राहिम लोदी को हरा दिया जाएगा और बाबर दिल्ली को लूटकर वापस अफगानिस्तान चला जाएगा तब दौलत खान लोदी दिल्ली पर बैठकर राज करेगा। पर दोस्तों बाबर कोई भोला इंसान नहीं था। उसको सारी इंटेंशंस पता थी और दौलत खान लोदी को दिल्ली तो दूर बाबर ने पंजाब पर भी राज करने नहीं दिया। जब बाबर ने पंजाब पर हमला किया तो दौलत खान लोदी पर भी हमला कर दिया और उससे पंजाब छीनकर उसे पंजाब से बाहर खदेड़ दिया और फिर वह आगे बढ़ता है और 1526 में 21 अप्रैल के दिन पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहिम लोदी को भी हरा देता है और दिल्ली पर कब्जा करके भारत में मुगल वंश की स्थापना करता है। अब साथियों इस मुद्दे पर भी आते हैं कि क्या राणा सांगा ने बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया था? क्योंकि बाबर ने तो बाबरनामा में यही लिखा है। तो साथियों इस फैक्ट पर कई इतिहासकारों ने एनालिसिस की है और कुछ पॉइंट्स रखे हैं। अगर इन पॉइंट्स को आप अच्छे से समझ लें तो आपको पता चल जाएगा कि बाबर ने साफ यहां पर झूठ लिखा है। पहला पॉइंट कि जिस इब्राहिम लोदी को उसके घर में घुसकर राणा सांगा ने एक नहीं तीन-तीन बार हराया हो उसको हराने के लिए किसी विदेशी की सहायता राणा सांगा को क्यों चाहिए थी? और वह भी तब जब इतिहास में प्रूफ है कि विदेशी आक्रांताओं ने हमारे पूर्वजों के साथ क्या किया है। क्या किया था पृथ्वीराज चौहान के साथ? क्या यह बात राणा सांगा और उनके मंत्रियों को नहीं पता थी? और अगर हम यह भी मान लें कि राणा सांगा ने बाबर को बुलाया था तो बाबर को बुलाने के बाद बाबर की तरफ से राणा सांगा लड़े क्यों नहीं? और अगर नहीं लड़े और बाबर इस बात से गुस्सा होकर राणा सांगा पर हमला कर रहा है तो क्या राणा सांगा के अंदर इतनी कूटनीति नहीं थी कि जिसको इनवाइट किया है उसके साथ संधि की जा सके। क्या वह कोई बहाना नहीं बना सकते थे? राणा सांगा बाबर से एक नहीं दो बार लड़ते हैं। जो दिखाता है कि राणा सांगा बाबर से किसी भी तरह के समझौते के लिए नहीं तैयार थे। तीसरा मान लीजिए कि यह स्ट्रेटजी थी राणा सांगा की बाबर को बुलाकर इब्राहिम लोदी से लड़वाने की और खुद दूर बैठकर इस लड़ाई को देखने की और जो जीतता उससे फिर राणा सांगा लड़कर दिल्ली पर कब्जा करते। मान लीजिए कि यह स्ट्रेटजी का पार्ट था। तो क्या यह स्ट्रेटजी राजपूतों के दस्तावेजों में ना मिलती? राजपूत क्या इसका गुणगान नहीं करते? क्यों किसी राजपूत दस्तावेज में आज तक नहीं कहीं पर मिला है कि राणा सांगा ने बाबर को आमंत्रित किया था। वहीं अगर आप राजपूत दस्तावेजों में देखेंगे तो जो बाबरनामा में लिखा है कि दौलत खान लोदी ने बुलाया था वो राजपूत दस्तावेजों में भी मिलता है। तो जो दौलत खान लोदी ने आमंत्रित किया इब्राहिम लोदी से लड़ने के लिए वो बात बाबरनामा में भी है। वो बात राजपूतों के दस्तावेज में भी है। लेकिन राणा सांगा ने बाबर को बुलाया यह केवल बाबरनामा में है जो बाबर की जुबानी है और किसी भी दस्तावेज में चाहे वो मुगलिया दस्तावेज हो या राजपूतों के दस्तावेज हो कहीं पर नहीं दिया गया है। तो इस बात का कोई कोरबोरेशन बाबरनामा के अलावा किसी भी डॉक्यूमेंट किसी भी दस्तावेज में क्यों नहीं मिलता? यह कोई छोटी-मोटी बात नहीं है कि एक राजा किसी दूसरे राजा से संधि कर रहा हो, समझौता कर रहा हो, उसे आमंत्रित कर रहा हो और उसके ही राज्य और उसकी आगे आने वाली पीढ़ियों ने इस स्ट्रेटजी के बारे में नहीं लिखा हो। और मान लीजिए एक बार के लिए राणा सांगा का यह प्लान फेल हो गया हो। वो बुलाए हो बाबर को। उसके बाद बाबर इब्राहिम लोदी को हराकर वापस ना गया हो और उल्टा राणा सांगा पर हमला कर दिया हो तो क्या इस फेलर के बारे में किसी ने नहीं लिखा होगा। सभी राजपूत इतने भी लॉयल नहीं थे राणा सांगा के लिए बहुत से ऐसे राजपूत थे जो राणा सांगा के खिलाफ भी थे। तो अगर अपने राजपूतों ने नहीं लिखा लेकिन ऐसा क्या हुआ कि दुश्मन राजपूतों ने भी राणा सांगा जी के इस फेलियर के बारे में नहीं लिखा। चौथा आप रीमा हुजा की किताब पढ़ेंगे ए हिस्ट्री ऑफ राजस्थान तो वहां पर यह भी क्लेम किया गया है कि अगर आप राजपूत वर्जन पर जाएंगे और राजपूत सोर्सेस को देखेंगे तो कई सोर्सेस में यह तक माना गया है कि राणा सांगा ने बाबर को नहीं बल्कि बाबर ने राणा सांगा की हेल्प मांगी थी इब्राहिम लोदी से लड़ाई करने के लिए और जब बाबर ने राणा सांगा से हेल्प मांगी थी तो राणा सांगा जी ने यह संदेश भिजवाया था क्योंकि इब्राहिम लोदी हम दोनों का कॉमन एनिमी है तो हम साथ में लड़ सकते हैं। लेकिन इस संदेश को भिजवाने के बाद हो सकता है कि मंत्रियों ने और सलाहकारों ने इस बात को समझाया हो कि यह गलत कदम है। हम एक विदेशी आक्रांता की तरफ से नहीं लड़ सकते और इसीलिए ही राणा सांगा जब बाबर ने पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहिम लोदी के खिलाफ आक्रमण किया तो राणा सांगा जी ने नहीं किया। लेकिन साथियों इन सब आर्गुमेंट के बाद एक आर्गुमेंट अभी भी बचता है कि फिर वह क्या रीज़न रहा कि बाबरनामा में बाबर ने इस बात को मेंशन किया। हमें यहां पर एक दो चीज़ समझनी पड़ेगी। बाबर इब्राहिम लोदी पर जब आक्रमण करता है तो अपनी सेना को यह आश्वासन दिलाता है कि इब्राहिम लोदी को हराने के बाद दिल्ली पर कब्जा करने के बाद जिसको भी अफगानिस्तान वापस जाने का मन करेगा उसको वो छोड़ देगा। तो सेना को यह विश्वास दिलाकर बाबर आया था। लेकिन जब बाबर ने दिल्ली पर कब्जा किया और जब उसको राणा सांगा के बारे में पता चला तो उसको यह पता चल गया था कि दिल्ली भी एक सेफ जगह नहीं है क्योंकि उसके पड़ोस में एक ताकतवर राजा का शासन है और जब तक वो उससे नहीं जीत लेगा तब तक वो शांति से अपने शासन को नहीं कर सकता। तो राणा सांगा के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए उसको एक रीजन चाहिए था और इस रीजन को जस्टिफाई करने के लिए उसने अपने बाबरनामा में इस रीजन को इजाता किया और आपको यह बात जानकर हैरानी होगी कि बाबरनामा लिखते समय ज्यादातर समय बाबर नशे में रहता था बाबर शराब का आदि था पूरे-पूरे दिन शराब पीता था और इस बारे में उसने बाबरनामा में खुलकर लिखा है अब साथियों बयाना करके एक जगह है राजस्थान में भरतपुर के पास और इस जगह पर फरवरी 1527 में बाबर की सेना राणा सांगा की सेना से पहली बार टकराती है और यहां पर बाबर की बुरी तरह हार होती है और इस युद्ध के बाद राजपूतों की एकता भी बहुत बढ़ जाती है। लेकिन यहां पर राणा सांगा जी से एक गलती होती है। गलती कहें या फिर हिंदू राजाओं के उदारवादी नीति कहें कि जब भी वह दुश्मनों को हराते थे तो उनको जाने देते थे। जैसे इब्राहिम लोदी का ही केस ले लें तो तीन बार हराया है राणा सांगा जी ने लेकिन तीनों बार जाने दिया है। तो बयाना में हराने के बाद बाबर पर फिर से तुरंत चढ़ाई नहीं करते। इससे बाबर को दोबारा अटैक करने के लिए 1 महीने का गैप मिल जाता है और इसमें वह और भी अच्छी स्ट्रेटजी बनाता है और दूसरा जब वह दोबारा लड़ने आता है तो जिहाद की घोषणा करके आता है। यानी अब वो अपने साम्राज्य विस्तार के लिए नहीं बल्कि इस्लाम के खातिर युद्ध करेगा। ऐसा वो क्यों करता है इसके दो रीज़न है। पहला रीज़न यह है कि बयाना में बुरी तरह हारने के बाद जो उसके सैनिक थे जो पहले ही अफगानिस्तान जाना चाहते थे पानीपत के प्रथम युद्ध के बाद। वो सैनिक अब लड़ने से मना कर देते हैं। विशेषकर राणा सांगा के साथ जब वो अपने सैनिकों को हताश देखता है लेकिन उसके मन में हिंदुस्तान को जीतने का सपना इतना बुलंद हो जाता है कि किसी भी तरह सामदाम दंड भेद लगाकर राणा सांगा को हराना चाहता है तो उसके मन में यह स्ट्रेटजी आती है कि अगर इस युद्ध को एक पर्सनल युद्ध से ऊपर उठाकर इस्लाम के खातिर लड़ा जाने वाला युद्ध में बदल दिया जाए तो दो चीजें हो सकती हैं। पहला तो हमारे जो सैनिक हैं जो हताश हैं वो मजहब के नाम पर जोश से भर जाएंगे। दूसरा राणा सांगा की तरफ वो सभी लोग जो मुसलमान हैं वो भी कहीं ना कहीं जिहाद के नाम पर राणा सांगा का साथ छोड़ देंगे। अब प्लान तो अच्छा था लेकिन यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि बाबर बिल्कुल भी मजहबी नहीं था। वो सारा दिन शराब पीता था। मुसलमानों से टैक्स लेता था तो किसी भी तरह से वो कुरान शरीफ को फॉलो नहीं करता था और यह बात उसके सैनिक और मंत्री सलाहकार आदि जानते थे। तो सैनिक अभी भी भरोसा करने के लिए रेडी नहीं थे। उनको भरोसा दिलाने के लिए बाबर ने उसी दिन शराब छोड़ दी। जितनी भी शराबें पड़ी थी उनको तुड़वा दिया और शराब को बैन करा दिया। साथ में मुसलमानों से जो वो टैक्स लेता था उसको भी बंद कर दिया। इतना करने के बाद सैनिकों को लगा कि बाबर यहां पर सीरियस है। इसीलिए उसके सैनिक मजहब के नाम पर लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं। तो बाबर अब गाजी बनना चाहता था और इसीलिए काफिर राणा सांगा के खिलाफ उसने जिहाद छेड़ दिया। इस बार उसकी सेना और भी जोश से भरी हुई थी और उसने इस बार तोपों और बारूदों का और भी अच्छे तरीके से प्रयोग किया। साथियों राणा सांगा की जो सेना थी वो तोपों से और बारूदों वाले वेपन से लड़ने के लिए अकष्टम नहीं थी। जब तोप गोले फेंकते थे तो बहुत ढेर सारे सैनिक एक साथ मरते थे। साथ में उन गोलों की आवाज और आघात से जो हाथी थे राणा सांगा की सेना में वह पागल भी हो गए और वह पागल हाथी अपनी ही सेना के सैनिकों को कुचलने भी लगे थे। इसके साथ एक प्रॉब्लम और थी। राजपूतों को एकत्रित तो किया गया था, संगठित किया गया था लेकिन चूंकि राजपूत अपनी-अपनी टुकड़ी लेकर आए थे तो जब कोई एक राजपूत मरता था तो उसकी टुकड़ी युद्ध में आगे लड़ने से मना कर देती थी। एक राजपूत मरा तो उसके साथ-साथ 5000 6000 सैनिक वापस लौट जाते थे। ऐसे में राणा सांगा ने निश्चय किया कि मैं आगे जाकर लड़ाई करूंगा जिससे जो पीछे जितने सैनिक हैं वो मुझे एक राजा मानकर पूरे गर्व और शौर्य के साथ लड़ाई करें। जब राणा सांगा आगे जाते हैं हाथी पर बैठकर तो बाबर एक स्ट्रेटजी लगाता है। बाबर एक तीरंदाजों की टुकड़ी को स्पेशली राणा सांगा पर लगा देता है। तो ऐसे में जब राणा सांगा पर बाणों की वर्षा होती है तो एक तीर उनके माथे में आकर लगता है और वह बेहोश हो जाते हैं। वो हाथी के ऊपर अपनी जगह पर गिर जाते हैं जिसको सेना देखकर निराश होती है। जहां पर बेहोश राणा सांगा जी को युद्ध के मैदान से बाहर ले जाया जाता है और तुरंत ही जो उनके साथ आए थे अज्जा जी वो उनके मुकुट को धारण करके सेना के नेतृत्व को पुनः संभालते हैं। सेना एक बार फिर खड़ी होती है लड़ाई करती है लेकिन बाबर की तोपों के सामने नहीं टिक पाती और इसमें बाबर की जीत होती है। अब साथियों जब राणा सांगा को होश आता है तो उनको लगता है कि बाबर हार चुका है और मेवाड़ जीत गया है। लेकिन उनको बताया जाता है कि बाबर हारा नहीं है। होश आने के बाद तुरंत बाद वह बाबर से फिर से लड़ना चाहते थे। उनको बताया जाता है कि बाबर अब चंदेरी की तरफ बढ़ रहा है और मालवा को जीतना चाहता है। राणा सांगा कहते हैं कि हमें चंदेरी की तरफ कच करना चाहिए और बाबर से लड़ना चाहिए। मैं बाबर से बिना जीते घर नहीं लौटूंगा। यहां उनको समझाया जाता है कि अभी हम कमजोर हैं। मेवाड़ जो है अनस्टेबल है। जब मेवाड़ स्टेबल हो जाए हम पुनः अपनी ताकत बना लें तो बाबर को हम हरा देंगे। लेकिन राणा सांगा यहां पर अपनी जिद पर अड़े रहते हैं और शायद इसी वजह से उनको अपनी ही जहर दे देते हैं। तो साथियों एक तरफ ऐसा योद्धा है जिसके पास पूरा शरीर नहीं है। एक हाथ एक पैर के दम पर वो फिर से बाबर से लड़ना चाहता है और आज एसी में बैठकर चार टाइम का खाना ठूंसकर लोग उन्हें गद्दार कह रहे हैं। और यही हिंदुओं की हजारों वर्षों से कमजोरी रही है गद्दारी। गद्दार राणा सांगा नहीं है। गद्दार तो हर वो एक भारतीय और हिंदू है जो ऐसे स्टेटमेंट का सपोर्ट करता है या इसके खिलाफ आवाज नहीं उठाता। और यह एक पैटर्न है। आप जब तक बटे रहेंगे तो आपके योद्धाओं के साथ यही किया जाएगा। श्री राम जी पर प्रश्न उठाया जाएगा। श्री कृष्ण जी को छलिया बोला जाएगा। छत्रपति शिवाजी महाराज को एक छोटे कस्बे का राजा कहा जाएगा। शंभू राजे को अय्याश कहा जाएगा और आज राणा सांगा को गद्दार कहा गया है और जब ऐसा कहा जाता है तो दूसरी तरफ शराबी धूर्त बाबर जैसे लोगों के कसीदे पढ़े जाते हैं। ऐसा इसीलिए होता है क्योंकि हिंदू बटे हुए हैं। आप राजपूत जाट बाबन बनिया में बटे रहिए और ऐसे होते रहेगा। मुझे अब कुछ और कहने का मन नहीं है। इस वीडियो को यहीं पर समाप्त करता हूं। जय श्री राम।
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